उस दिल से क्यों आ रही है इक रौशनी दीदार की...बुझा हुआ जो दीया था कभी, वो बन के चाँद एकाएक
क्यों रौशन हुआ...असर हुआ क्या किसी के वज़ूद का..क्या असर हुआ किसी अनदेखी रौशनी के उस
पुरज़ोर अक्स का...चलते-चलते ज़िंदगी की राहों मे,यह दीया बस बुझने को था..जो संभाल पाए ना खुद
को तेज़ हवा के झोकों से..उस के लिए किसी ने उसी का वज़ूद बन कर,क्यों एकाएक थाम लिया..आज
वो दिल महकने चला है,खुशबू भरी बगिया के साथ..तभी तो हम को आ रही है रौशनी उसी के रौशन
दिल के बाग़बान से...
क्यों रौशन हुआ...असर हुआ क्या किसी के वज़ूद का..क्या असर हुआ किसी अनदेखी रौशनी के उस
पुरज़ोर अक्स का...चलते-चलते ज़िंदगी की राहों मे,यह दीया बस बुझने को था..जो संभाल पाए ना खुद
को तेज़ हवा के झोकों से..उस के लिए किसी ने उसी का वज़ूद बन कर,क्यों एकाएक थाम लिया..आज
वो दिल महकने चला है,खुशबू भरी बगिया के साथ..तभी तो हम को आ रही है रौशनी उसी के रौशन
दिल के बाग़बान से...