जागती आँखों के सपने और बंद पलकों के किनारे...सपनों का महल एक जैसा है..इस महल के
दरवाजे पे लिखा है नाम वफ़ा का..इस की तमाम खिड़कियां सजी है ईमानदारी के साज़ से..तेरे
और मेरे सिवा किसी और को आने की इज़ाज़त नहीं देती इस महल की जमीं... इस के बग़ीचे मे
खिलते है फूल नज़ाकत के...जिस मे शिरकत करते है खुदा,दे के अपनी रहमत और दुआ का वो
आँचल..जिस के तले तेरे-मेरे अरमान पनाह लेते है...तेरा-मेरा यह सफर ना जाने कितनी सदियों से
ज़िंदगी की मोहलत पे है..कभी तेरी रूह करती है कब्ज़ा मेरी रूह पे तो कभी मेरी यह रूह तुझे
मुहब्बत का सलाम शिद्दत से नवाती है...
दरवाजे पे लिखा है नाम वफ़ा का..इस की तमाम खिड़कियां सजी है ईमानदारी के साज़ से..तेरे
और मेरे सिवा किसी और को आने की इज़ाज़त नहीं देती इस महल की जमीं... इस के बग़ीचे मे
खिलते है फूल नज़ाकत के...जिस मे शिरकत करते है खुदा,दे के अपनी रहमत और दुआ का वो
आँचल..जिस के तले तेरे-मेरे अरमान पनाह लेते है...तेरा-मेरा यह सफर ना जाने कितनी सदियों से
ज़िंदगी की मोहलत पे है..कभी तेरी रूह करती है कब्ज़ा मेरी रूह पे तो कभी मेरी यह रूह तुझे
मुहब्बत का सलाम शिद्दत से नवाती है...