इंतज़ार की यह कौन सी बेला रही ...वो आए भी हम से गुफ्तगू करने और बिन बोले लौट भी गए...वो
दीवाना पागल है या कजरे की धार जैसा तीखा...कोई इंतज़ार करता रहा और वो पगला बात अधूरी
छोड़ बादलों मे कही ग़ुम हो गया...हम उस को समझते थे सिरफिरा पर यह तो हद से जयदा दीवाना
निकला..देर तक सोचते रहे,वो दुनियाँ की कौन सी पहेली है जिस को सुलझाते है जितना हम,वो उतना
ही उलझ जाता है...दीवानगी की हद से जयदा दीवाना होना शयद यही होता है....
दीवाना पागल है या कजरे की धार जैसा तीखा...कोई इंतज़ार करता रहा और वो पगला बात अधूरी
छोड़ बादलों मे कही ग़ुम हो गया...हम उस को समझते थे सिरफिरा पर यह तो हद से जयदा दीवाना
निकला..देर तक सोचते रहे,वो दुनियाँ की कौन सी पहेली है जिस को सुलझाते है जितना हम,वो उतना
ही उलझ जाता है...दीवानगी की हद से जयदा दीवाना होना शयद यही होता है....