नख़रे कितने उठाए तेरे कि तेरे कदम तो अब धरती पे पड़ते ही नहीं...तुझे चाहा शिद्दत से,इस का यह
मतलब तो नहीं कि तू गिरा दे मुझे मेरे ही ज़मीर से....कुछ रंग प्यार के ऐसे भी होते है जो बेरुखी से
सफ़ेद भी हो जाते है..तुझे खुदा माना मैंने और तुम ने, वज़ूद मेरे को मिटा दिया इक ही पल मे...तेरे
लिए मुहब्बत इक खेल रहा होगा..लगता है तुझे अब कोई और मिल गया होगा...गर है ऐसा तो इतना
सुनते जाओ,तुम्हे सर से पांव तक अपनी दुआओं मे बांधा था..और आज उन दुआओं के घेरे से तुझे
आज़ाद भी कर दिया हम ने...
मतलब तो नहीं कि तू गिरा दे मुझे मेरे ही ज़मीर से....कुछ रंग प्यार के ऐसे भी होते है जो बेरुखी से
सफ़ेद भी हो जाते है..तुझे खुदा माना मैंने और तुम ने, वज़ूद मेरे को मिटा दिया इक ही पल मे...तेरे
लिए मुहब्बत इक खेल रहा होगा..लगता है तुझे अब कोई और मिल गया होगा...गर है ऐसा तो इतना
सुनते जाओ,तुम्हे सर से पांव तक अपनी दुआओं मे बांधा था..और आज उन दुआओं के घेरे से तुझे
आज़ाद भी कर दिया हम ने...