नाज़ुक़ से भी बहुत नाज़ुक़ लता थी वो..अपने तने से मजबूती से लिपटी हुई थी वो...कैसे छोड़ देती अपने
सहारे को जिस के लिए जी रही थी वो अपनी साँसों को..ढाल बनी उस की खुद मे समेटी थी वो..उस को
जीवन का अर्थ बताने के वास्ते,अपनी बाहें उस के गले मे मजबूती से बांधे हुए थी वो...वाकिफ था उस का
साथी उस की वफादारी से..वो कितनी नाज़ुक़ है इस का अंदाज़ा तक था उसे..लिपट के उस के साथ उसी
की बाहों मे,दम भी तोड़ दे गे इक साथ इक दूजे की बाहों मे...
सहारे को जिस के लिए जी रही थी वो अपनी साँसों को..ढाल बनी उस की खुद मे समेटी थी वो..उस को
जीवन का अर्थ बताने के वास्ते,अपनी बाहें उस के गले मे मजबूती से बांधे हुए थी वो...वाकिफ था उस का
साथी उस की वफादारी से..वो कितनी नाज़ुक़ है इस का अंदाज़ा तक था उसे..लिपट के उस के साथ उसी
की बाहों मे,दम भी तोड़ दे गे इक साथ इक दूजे की बाहों मे...