Wednesday 10 June 2020

इख़्तियार इतना भी नहीं कि उस के जाते हुए कदमो को रोक पाते...इख़्तियार इतना भी नहीं कि बरखा

को रोक पाते..मौसम सुहाना हुआ तो दिल ने मुस्कुरा कर कहा,मुबारकबाद कि तूने हवाओं का रुख

बदल दिया...मगर हमारा इख़्तियार तो इस मौसम पे भी नहीं कि कह दे..थोड़ा और रुक जा,दिल अभी

भरा नहीं...कितने मजबूर और बेबस है हम,सब को रोकना चाहा पर कुछ कह ना सके हम..मौसम तो

बरस कर चला गया..और हम है कि बेमौसम आँखों से बरस रहे है अब...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...