इख़्तियार इतना भी नहीं कि उस के जाते हुए कदमो को रोक पाते...इख़्तियार इतना भी नहीं कि बरखा
को रोक पाते..मौसम सुहाना हुआ तो दिल ने मुस्कुरा कर कहा,मुबारकबाद कि तूने हवाओं का रुख
बदल दिया...मगर हमारा इख़्तियार तो इस मौसम पे भी नहीं कि कह दे..थोड़ा और रुक जा,दिल अभी
भरा नहीं...कितने मजबूर और बेबस है हम,सब को रोकना चाहा पर कुछ कह ना सके हम..मौसम तो
बरस कर चला गया..और हम है कि बेमौसम आँखों से बरस रहे है अब...
को रोक पाते..मौसम सुहाना हुआ तो दिल ने मुस्कुरा कर कहा,मुबारकबाद कि तूने हवाओं का रुख
बदल दिया...मगर हमारा इख़्तियार तो इस मौसम पे भी नहीं कि कह दे..थोड़ा और रुक जा,दिल अभी
भरा नहीं...कितने मजबूर और बेबस है हम,सब को रोकना चाहा पर कुछ कह ना सके हम..मौसम तो
बरस कर चला गया..और हम है कि बेमौसम आँखों से बरस रहे है अब...