Friday 5 June 2020

आ इस शाम को आबाद कर दे अपने जश्ने -कदम से...कुछ फूल बरसा दे अपने दामन से हमारे

सदके-हुस्न पे...हुस्न की यह कातिल बिजलियां कब बार-बार गिरती है..अदाएं हुस्न की कहां क्यों

कब इतना मचलती है...मौसम तक मात खा गया,हमारे भीगे गेसुओं के जाल मे...बरस रहा है तभी

से जब से हम ने खुद को भिगोया है इस के बरसते जाम मे...कर रहा है सिफारिश,एक मौका तो

दीजिए...कर ले दीदार आप के हुस्ने-पाक का,चला जाऊ गा मैं..बस खुद को घूँघट मे छिपा लीजिए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...