हम तो चुन रहे है यह सफ़ेद मोती,जो गिर रहे है आसमाँ से आज...उठा रहे है यह मोती सोच के आज,
तेरे शहर तेरी बस्ती से नज़राना भेजा है किसी ने खास...पिघल रहे है हमारे हाथों मे यह मोती,तेरे कमजोर
वजूद की तरह...बहुत संभाला इन्हे मगर यह बह गए तेरी बातो की तरह..हम रोकते रहे इन को पर यह
रुके नहीं तेरे जाते हुए कदमो की तरह...ताकीद भी की मगर दिल को दे गए ठंडी आह,तेरी बेमतलब
बातो की तरह..यह नज़राना भेजा है या मोती की शक्ल मे हम को परखने भेजा है इसे...
तेरे शहर तेरी बस्ती से नज़राना भेजा है किसी ने खास...पिघल रहे है हमारे हाथों मे यह मोती,तेरे कमजोर
वजूद की तरह...बहुत संभाला इन्हे मगर यह बह गए तेरी बातो की तरह..हम रोकते रहे इन को पर यह
रुके नहीं तेरे जाते हुए कदमो की तरह...ताकीद भी की मगर दिल को दे गए ठंडी आह,तेरी बेमतलब
बातो की तरह..यह नज़राना भेजा है या मोती की शक्ल मे हम को परखने भेजा है इसे...