Thursday 4 June 2020

यह बरखा जब भी आती है...नादानियाँ हज़ारो कर जाती है..कैसे समझाए इसे तू क्यों कितनो की राह

रोक देती है..परिंदो को बेवजह भीगने पे मजबूर करती है...कुछ सवाल जो अधूरे रह गए थे कल,उन

 का जवाब मिलने से पहले झमाझम बरस पड़ती है..वक़्त से पहले तेरा यू बरसना,दिलों को तोड़ देता

है...फिर तूफान बन के जो आती हो  तो ज़माने को डरा देती हो...जा लौट जा अपने देस,यहाँ अभी

दुखो का दौर बाकी है..आना तभी जब जहाँ डूबने लगे खुशियों की बेला मे..छोड़ नादानियाँ,जा लौट

जा देस अपने कि यहाँ अभी तकलीफो का डेरा है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...