सो जा अब सकून की नींद पागल बदरा कि आज तू बहुत बरसा है...बरस बरस के थका है इतना कि
तेरे वज़ूद पे अब हम को रहम आया है...कायम रहना अपनी हस्ती पे कि तेरे बगैर इस धरा पे रहना
नामुमकिन है...भिगो के तूने मन-आंगन,खुद को हमारी नज़रो मे उठाया है...सूखा-रुखा सा दिन और
तपन से जलती काया..तेरे बरसने से मौसम खुशगवार हो पाया है...रात गहराने लगी है पागल बदरा..
सो जा अब सकून से कि आज तू खुल के बहुत बरसा है...
तेरे वज़ूद पे अब हम को रहम आया है...कायम रहना अपनी हस्ती पे कि तेरे बगैर इस धरा पे रहना
नामुमकिन है...भिगो के तूने मन-आंगन,खुद को हमारी नज़रो मे उठाया है...सूखा-रुखा सा दिन और
तपन से जलती काया..तेरे बरसने से मौसम खुशगवार हो पाया है...रात गहराने लगी है पागल बदरा..
सो जा अब सकून से कि आज तू खुल के बहुत बरसा है...