उस की बदमाशियां जब नादानियाँ लगने लगी तो उम्र का यह खूबसूरत मोड़ याद आया...नाज़नीन
हो तुम,यह सुन कर खुद को एहसासों से भरा पाया...कल तक खेलते थे गुड्डे -गुड्डियों से...आज खुद
के बड़े होने का एहसास उस की बातो से आया...आईना दिन मे हज़ारो बार देखा..और बार-बार उसी
आईने मे चेहरा उसी का देखा...सुर्ख हुए यह गाल कहानी कह रहे है हमारी...नूर अपने ही चेहरे का देख
खुद ही हैरान है हम..किताबों को पढ़ने बैठे तो जानम,क्यों फिर हम को तेरा किताबी चेहरा इन मे
नज़र आया...
हो तुम,यह सुन कर खुद को एहसासों से भरा पाया...कल तक खेलते थे गुड्डे -गुड्डियों से...आज खुद
के बड़े होने का एहसास उस की बातो से आया...आईना दिन मे हज़ारो बार देखा..और बार-बार उसी
आईने मे चेहरा उसी का देखा...सुर्ख हुए यह गाल कहानी कह रहे है हमारी...नूर अपने ही चेहरे का देख
खुद ही हैरान है हम..किताबों को पढ़ने बैठे तो जानम,क्यों फिर हम को तेरा किताबी चेहरा इन मे
नज़र आया...