Wednesday 3 June 2020

उस की बदमाशियां जब नादानियाँ लगने लगी तो उम्र का यह खूबसूरत मोड़ याद आया...नाज़नीन

हो तुम,यह सुन कर खुद को एहसासों से भरा पाया...कल तक खेलते थे गुड्डे -गुड्डियों से...आज खुद

के बड़े होने का एहसास उस की बातो से आया...आईना दिन मे हज़ारो बार देखा..और बार-बार उसी

आईने मे चेहरा उसी का देखा...सुर्ख हुए यह गाल कहानी कह रहे है हमारी...नूर अपने ही चेहरे का देख

खुद ही हैरान है हम..किताबों को पढ़ने बैठे तो जानम,क्यों फिर हम को तेरा किताबी चेहरा इन मे

नज़र आया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...