Monday 1 July 2019

कारवां चलता रहा और हम ज़मी पे रुके रहे...बादल बरसते रहे,बौछारो से भिगोते रहे,पर हम ज़मी पे

रुके रहे..कलियां पैदा हुई,फूल भी खिलते रहे..मगर हम ज़मी पे रुके रहे..दौलत-शोहरत झोली मे

आती रही,हम थे कि ज़मी से हिले नहीं..लहरे रुक रुक कर हम को, ज़न्नत के नज़ारो से रूबरू करवाने

की कोशिश मे जुटी रही..मगर हम ज़मी पे थम गए ..फिर ना जाने कुदरत का कौन सा करिश्मा आया,

रहे फिर भी ज़मी पे,मगर कुछ अलग अंदाज़ मे थिरकरने लगे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...