कारवां चलता रहा और हम ज़मी पे रुके रहे...बादल बरसते रहे,बौछारो से भिगोते रहे,पर हम ज़मी पे
रुके रहे..कलियां पैदा हुई,फूल भी खिलते रहे..मगर हम ज़मी पे रुके रहे..दौलत-शोहरत झोली मे
आती रही,हम थे कि ज़मी से हिले नहीं..लहरे रुक रुक कर हम को, ज़न्नत के नज़ारो से रूबरू करवाने
की कोशिश मे जुटी रही..मगर हम ज़मी पे थम गए ..फिर ना जाने कुदरत का कौन सा करिश्मा आया,
रहे फिर भी ज़मी पे,मगर कुछ अलग अंदाज़ मे थिरकरने लगे...
रुके रहे..कलियां पैदा हुई,फूल भी खिलते रहे..मगर हम ज़मी पे रुके रहे..दौलत-शोहरत झोली मे
आती रही,हम थे कि ज़मी से हिले नहीं..लहरे रुक रुक कर हम को, ज़न्नत के नज़ारो से रूबरू करवाने
की कोशिश मे जुटी रही..मगर हम ज़मी पे थम गए ..फिर ना जाने कुदरत का कौन सा करिश्मा आया,
रहे फिर भी ज़मी पे,मगर कुछ अलग अंदाज़ मे थिरकरने लगे...