Wednesday 10 July 2019

वो मासूम सी हंसी,वो खनकता अंदाज़...दिल की परतो का बहुत धीमे,बहुत ही धीमे से खुलना...

कोई खता की भी नहीं,मगर झट से माफ़ी-नामा क़बूल करना..कभी कभी बात करते करते आवाज़

का भर आना,और तभी बात को बदल देना...समझते तो हम भी है,मगर नज़ाकत वक़्त की जानते

भी है..वो तमाम काली परते मिटाना हम को आता है..शर्त बस इतनी सी है,कि मुस्कुराने का खज़ाना

दिल के तहखाने मे अभी तक बंद क्यों है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...