Friday 5 July 2019

बचपन की वो नन्ही सी गुड़िया,बाबा का हाथ थामे हुए...चंचल,शैतान मगर मासूमियत से लबालब

भरे हुए...नैनो की भाषा से बाबा को कुछ समझाते हुए...ना समझे तो उन की बेबसी पे,खिलखिला

कर हँसते हुए...गुलाबी सी पोशाक मे,बाबा की दुआए लेते हुए..कब बड़ी हो गई,वो भी ना जान सके..

बाबा चले गए,पर संस्कार इतने छोड़ गए कि लाडो की ऊथल-पुथल ज़िंदगी मे अपनी रौशनी बिखेर

गए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...