बचपन की वो नन्ही सी गुड़िया,बाबा का हाथ थामे हुए...चंचल,शैतान मगर मासूमियत से लबालब
भरे हुए...नैनो की भाषा से बाबा को कुछ समझाते हुए...ना समझे तो उन की बेबसी पे,खिलखिला
कर हँसते हुए...गुलाबी सी पोशाक मे,बाबा की दुआए लेते हुए..कब बड़ी हो गई,वो भी ना जान सके..
बाबा चले गए,पर संस्कार इतने छोड़ गए कि लाडो की ऊथल-पुथल ज़िंदगी मे अपनी रौशनी बिखेर
गए..
भरे हुए...नैनो की भाषा से बाबा को कुछ समझाते हुए...ना समझे तो उन की बेबसी पे,खिलखिला
कर हँसते हुए...गुलाबी सी पोशाक मे,बाबा की दुआए लेते हुए..कब बड़ी हो गई,वो भी ना जान सके..
बाबा चले गए,पर संस्कार इतने छोड़ गए कि लाडो की ऊथल-पुथल ज़िंदगी मे अपनी रौशनी बिखेर
गए..