नज़र का यह अनोखा अंदाज़ और फिर मौसम के कहर का बहकता सैलाब...क्या ले गया,क्या दे गया...
हिसाब-किताब क्या रखे,यादाशत पे तो जैसे ताला लग गया...जी चाहता है कर दे मौसम के हवाले
सारे पैगाम...खुशियों को बिखेरे इतना कि सहेजते सहेजते थक जाए वो हाथ...समंदर मे भर दे इतने
मोती कि निकाले वो जितनी बार,हमारी याद मे मुस्कुराए वो मोती देखे जितनी बार....
हिसाब-किताब क्या रखे,यादाशत पे तो जैसे ताला लग गया...जी चाहता है कर दे मौसम के हवाले
सारे पैगाम...खुशियों को बिखेरे इतना कि सहेजते सहेजते थक जाए वो हाथ...समंदर मे भर दे इतने
मोती कि निकाले वो जितनी बार,हमारी याद मे मुस्कुराए वो मोती देखे जितनी बार....