कागज़ के यह पन्ने मिल जाते है दुकानों पे अक्सर...दास्तानें-मुहब्बत का दिल को हिला देने वाला वो
फलसफा,जिस ने इन पन्नो पे लिखा..समझने के लिए सिर्फ वही समझा,जो मुहब्बत का दावेदार रहा...
कौन जाना कौन समझा कि मुहब्बत कैसी होती है..जो एक पल मे खिले,ताउम्र साँसों मे बसे...कोई पास
रह कर भी ना समझ पाया तो कोई दूर से इस को खेल समझता ही रहा..कांच के शीशे सी होती है यह
मुहब्बत,जिस मे झूठ का इक कण भी नहीं होता..मुहब्बत का दम भरने वालो,झूठ पे कभी मुहब्बत
का महल खड़ा भी नहीं होता...
फलसफा,जिस ने इन पन्नो पे लिखा..समझने के लिए सिर्फ वही समझा,जो मुहब्बत का दावेदार रहा...
कौन जाना कौन समझा कि मुहब्बत कैसी होती है..जो एक पल मे खिले,ताउम्र साँसों मे बसे...कोई पास
रह कर भी ना समझ पाया तो कोई दूर से इस को खेल समझता ही रहा..कांच के शीशे सी होती है यह
मुहब्बत,जिस मे झूठ का इक कण भी नहीं होता..मुहब्बत का दम भरने वालो,झूठ पे कभी मुहब्बत
का महल खड़ा भी नहीं होता...