मिज़ाज़ की ना पूछिए बस फसे है किसी तूफानी सैलाब मे..गुजारिश है बस इतनी अब रहमो-करम
कीजिए...किश्ती को किनारे लगाने के लिए मिन्नतें करते है..हाथ जोड़ कर दिल से पुकारते है..ना
डूबने दीजिए हमारी किश्ती को,भार से पहले ही घायल है..उठाए कैसे अब बोझ अपना कि किसी और
का दिल भी पास हमारे है..कश्मकश का क्या कहना,रातो की नींद अब नदारद है...
कीजिए...किश्ती को किनारे लगाने के लिए मिन्नतें करते है..हाथ जोड़ कर दिल से पुकारते है..ना
डूबने दीजिए हमारी किश्ती को,भार से पहले ही घायल है..उठाए कैसे अब बोझ अपना कि किसी और
का दिल भी पास हमारे है..कश्मकश का क्या कहना,रातो की नींद अब नदारद है...