Friday 19 July 2019

दे कर आज इसी ज़िंदगी को अर्ध-विराम अपने अंधेरो मे लौट आए है...आखिरी कोशिश कर के हम फिर

उसी दुनिया के हो गए है,जहा निष्पाप प्रेम के मासूम उजाले है..जो है इतने पाक-साफ़ कि लगता है कि

हमारे छूने भर से वो मैले हो जाए गे..माँ ठीक कहती थी यह दुनिया बुरी है,बहुत बुरी..तू यहाँ के लोगो

से कैसे निभा पाए गी...जो कहते है कुछ,करते है कुछ..आखिर मे किसी की बेबसी की हंसी उड़ा कर

खुद मुस्कुराया करते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...