दे कर आज इसी ज़िंदगी को अर्ध-विराम अपने अंधेरो मे लौट आए है...आखिरी कोशिश कर के हम फिर
उसी दुनिया के हो गए है,जहा निष्पाप प्रेम के मासूम उजाले है..जो है इतने पाक-साफ़ कि लगता है कि
हमारे छूने भर से वो मैले हो जाए गे..माँ ठीक कहती थी यह दुनिया बुरी है,बहुत बुरी..तू यहाँ के लोगो
से कैसे निभा पाए गी...जो कहते है कुछ,करते है कुछ..आखिर मे किसी की बेबसी की हंसी उड़ा कर
खुद मुस्कुराया करते है...
उसी दुनिया के हो गए है,जहा निष्पाप प्रेम के मासूम उजाले है..जो है इतने पाक-साफ़ कि लगता है कि
हमारे छूने भर से वो मैले हो जाए गे..माँ ठीक कहती थी यह दुनिया बुरी है,बहुत बुरी..तू यहाँ के लोगो
से कैसे निभा पाए गी...जो कहते है कुछ,करते है कुछ..आखिर मे किसी की बेबसी की हंसी उड़ा कर
खुद मुस्कुराया करते है...