ईश्वर को देखा नहीं कभी..बस एक धुंधली सी तस्वीर पलकों के कोनो मे महकती रही..क्या ईश्वर
होता है,क्या वो जीने की वजह भी देता है..इतने सवाल पर जवाब खुद ही खुद मे ढूंढ़ते रहे..सो गए
कभी खुले आशियाने मे,कभी सोने की कोशिश मे करवटें बदलते रहे...एक मसीहा फिर ईश्वर ने
भेजा,तब हम समझे क्यों यह दुनिया अब भी है ज़न्नत जैसी ..बिलकुल वैसी,जैसे ईश्वर की बोली..
होता है,क्या वो जीने की वजह भी देता है..इतने सवाल पर जवाब खुद ही खुद मे ढूंढ़ते रहे..सो गए
कभी खुले आशियाने मे,कभी सोने की कोशिश मे करवटें बदलते रहे...एक मसीहा फिर ईश्वर ने
भेजा,तब हम समझे क्यों यह दुनिया अब भी है ज़न्नत जैसी ..बिलकुल वैसी,जैसे ईश्वर की बोली..