कितने दरीचों से निकल कर इतनी दूर आए है..बेवफाई वक़्त करता रहा,हम तो खुद को खुली किताब
की तरह रखते आए है..फलसफा ज़िंदगी का क्या समझते,जब की साँसे तो दूजो को देते आए है...एक
कशिश ऐसी रही हम मे,दिल सभी का जीत लेने मे कामयाब होते आए है..आगे क्या होगा,यह सोच हम
पर हावी हो नहीं पाई..रुख जो देखा ज़िंदगी का जैसा,हम तो खुद को उसी के रूप मे ढालते आए है...
की तरह रखते आए है..फलसफा ज़िंदगी का क्या समझते,जब की साँसे तो दूजो को देते आए है...एक
कशिश ऐसी रही हम मे,दिल सभी का जीत लेने मे कामयाब होते आए है..आगे क्या होगा,यह सोच हम
पर हावी हो नहीं पाई..रुख जो देखा ज़िंदगी का जैसा,हम तो खुद को उसी के रूप मे ढालते आए है...