Wednesday 31 July 2019

फैसले पे ही फैसला रुका है,तेरी रजामंदी से...ज़िंदगी क्या दे रही है चुनौती एक बार फिर से...चुनौती

भी कुछ ऐसी,बंधे है फ़र्ज़ और रुतबे के ज़ाल मे...दौलत को तो एक बार सिरे से नकार भी दे,दूरी का 

वो नासूर झेलना अब बस मे नहीं मेरे...जाना है इस पार या फिर उस पार,जज्ब करना है खुद को खुद

ही के साथ...फैसला ले गे जरूर मगर,तेरी रजामंदी से.. 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...