फैसले पे ही फैसला रुका है,तेरी रजामंदी से...ज़िंदगी क्या दे रही है चुनौती एक बार फिर से...चुनौती
भी कुछ ऐसी,बंधे है फ़र्ज़ और रुतबे के ज़ाल मे...दौलत को तो एक बार सिरे से नकार भी दे,दूरी का
वो नासूर झेलना अब बस मे नहीं मेरे...जाना है इस पार या फिर उस पार,जज्ब करना है खुद को खुद
ही के साथ...फैसला ले गे जरूर मगर,तेरी रजामंदी से..
भी कुछ ऐसी,बंधे है फ़र्ज़ और रुतबे के ज़ाल मे...दौलत को तो एक बार सिरे से नकार भी दे,दूरी का
वो नासूर झेलना अब बस मे नहीं मेरे...जाना है इस पार या फिर उस पार,जज्ब करना है खुद को खुद
ही के साथ...फैसला ले गे जरूर मगर,तेरी रजामंदी से..