Saturday 13 July 2019

बेजुबां तो नहीं मगर जुबां खोले गे ही नहीं...अंदर क्या होता है यह खुल कर कभी बोले गे ही नहीं..तू

सामने आ जाए तो हसरते मचल जाए गी..सुभान-अल्लाह पसीने पसीने हो जाए गे मगर हाथ लगाए

गे ही नहीं..''''कौन सी नगरी से आए हो जो बुत बन कर यू खड़े हो..दिल को देखना, कही चट्टान से

कोई सीख ले कर आए हो'''खिलखिला कर जो हम हंसे वो तो मोम के जैसे पिघल गए..जुबां जो फिसली

तो ना जाने किस मोड़ पे जा कर रुक गई..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...