Sunday 7 July 2019

बरसात की नन्ही बूंदो के तले,इस सवेरे की निखरी रौशनी के तले... निकल रही है मन से वो आवाज़,

जो माँगा कुदरत से आज..बताने के लिए लफ्ज़ नहीं है मेरे पास...शाखाएं जैसे निखरी है,फूलों को यह

कहती है...गुलशन के हर फूल से पूछ,किस ने पाया नया इक जीवन...मुरझाते मुरझाते जब वो इतना

सहमा,बारिश की इक बूंद ने आ कर जीवन उस मे ऐसा डाला...बोल नहीं पाया वो बेचारा,बह गए आंसू

खिला जग उस का सारा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...