बरसात की नन्ही बूंदो के तले,इस सवेरे की निखरी रौशनी के तले... निकल रही है मन से वो आवाज़,
जो माँगा कुदरत से आज..बताने के लिए लफ्ज़ नहीं है मेरे पास...शाखाएं जैसे निखरी है,फूलों को यह
कहती है...गुलशन के हर फूल से पूछ,किस ने पाया नया इक जीवन...मुरझाते मुरझाते जब वो इतना
सहमा,बारिश की इक बूंद ने आ कर जीवन उस मे ऐसा डाला...बोल नहीं पाया वो बेचारा,बह गए आंसू
खिला जग उस का सारा...
जो माँगा कुदरत से आज..बताने के लिए लफ्ज़ नहीं है मेरे पास...शाखाएं जैसे निखरी है,फूलों को यह
कहती है...गुलशन के हर फूल से पूछ,किस ने पाया नया इक जीवन...मुरझाते मुरझाते जब वो इतना
सहमा,बारिश की इक बूंद ने आ कर जीवन उस मे ऐसा डाला...बोल नहीं पाया वो बेचारा,बह गए आंसू
खिला जग उस का सारा...