ज़ख़्म कभी अपनों ने दिए तो कभी बेगानो ने..ज़ख़्म जो कभी छोटे थे तो कभी गहरे थे..ख़ामोशी से
सब सहते रहे..तक़दीर ने जो लिखा ,उस को नियति मान भुगतान करते ही रहे..जो ज़ख़्म आज
किस्मत ने दिया,वह है बहुत ही गहरा..इतना इतना गहरा कि जो कभी भी ना भर पाए गा..फर्क अब
इतना है,सहने की सीमा अब पार हुई..अब तो यह मेरी चिता के साथ ही जल कर खाक हो जाये गा
ना अब फिर से जन्म लेने का इरादा है,ना भूले से इंसानो की दुनिया मे बसने का फिर कोई खवाब है...
सब सहते रहे..तक़दीर ने जो लिखा ,उस को नियति मान भुगतान करते ही रहे..जो ज़ख़्म आज
किस्मत ने दिया,वह है बहुत ही गहरा..इतना इतना गहरा कि जो कभी भी ना भर पाए गा..फर्क अब
इतना है,सहने की सीमा अब पार हुई..अब तो यह मेरी चिता के साथ ही जल कर खाक हो जाये गा
ना अब फिर से जन्म लेने का इरादा है,ना भूले से इंसानो की दुनिया मे बसने का फिर कोई खवाब है...