Saturday, 20 July 2019

ज़ख़्म कभी अपनों ने दिए तो कभी बेगानो ने..ज़ख़्म जो कभी छोटे थे तो कभी गहरे थे..ख़ामोशी से

सब सहते रहे..तक़दीर ने जो लिखा ,उस को नियति मान भुगतान करते ही रहे..जो ज़ख़्म आज

किस्मत ने दिया,वह है बहुत ही गहरा..इतना इतना गहरा कि जो कभी भी ना भर पाए गा..फर्क अब

इतना है,सहने की सीमा अब पार हुई..अब तो यह मेरी चिता के साथ ही जल कर खाक हो जाये गा

ना अब फिर से जन्म लेने का इरादा है,ना भूले से इंसानो की दुनिया मे बसने का फिर कोई खवाब है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...