Saturday 27 July 2019

सावन को देखा आज बहुत नज़दीक से..महसूस किया बेहद करीब से...लोगो से सुना था गरज़ता है

जब सावन तो चीत्कार मच जाती है..सहम जाती है दुनियां,तबाही मच जाती है...कौन यह जाना कि

सावन की भी अपनी कोई मर्ज़ी है..किस ने माना कि उस को भी किसी की जरुरत है...सब ने चाहा कि

वो उन की मर्ज़ी से रहे,मन हो या नो हो वो बरसता ही रहे..सावन की मर्ज़ी को हम ने रखा सर-आँखों पे,

बरसा वो आज खुद के मन से,और हम ने बलाए ली उस की बेहद प्यार से...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...