दूर दराज़ तक फैली है तेरी मुहब्बत की चादर..फिर भी क्यों पूछते हो मुझ से,दूर मुझ से कभी चले
तो ना जाओ गे...आसमां से आगे कोई और आसमां है,धरती के तले कौन सा और तला है...कितने
नादान हो जो यह भी नहीं समझते कि मेरी हद है कहां तक...तेरे नाम से जो शुरू होती हो,तेरे नाम
के साथ ख़त्म हो जाती हो...ऐसी है मुहब्बत मेरी,दूर दराज़ तक जो फैली हो ...
तो ना जाओ गे...आसमां से आगे कोई और आसमां है,धरती के तले कौन सा और तला है...कितने
नादान हो जो यह भी नहीं समझते कि मेरी हद है कहां तक...तेरे नाम से जो शुरू होती हो,तेरे नाम
के साथ ख़त्म हो जाती हो...ऐसी है मुहब्बत मेरी,दूर दराज़ तक जो फैली हो ...