वो नज़र का धोखा था या झूठी तारीफों का फरेब...नहीं समझ सके बेख्याली सपने के महल...जीवन
दे चुके उन मासूमो के नाम,जो सिर्फ दो रोटी पाने के लिए हम को सच्चा प्यार किया करते है..रंग-रूप
से परे वो तो सिर्फ हमारे हाथो का स्पर्श महसूस किया करते है..दे कर उन के लबो पे हंसी हम तो जैसे
ज़िंदा हो जाते है..भूल जाते है उन इंसानो को,जो सिर्फ दग़ा ही दिया करते है...
दे चुके उन मासूमो के नाम,जो सिर्फ दो रोटी पाने के लिए हम को सच्चा प्यार किया करते है..रंग-रूप
से परे वो तो सिर्फ हमारे हाथो का स्पर्श महसूस किया करते है..दे कर उन के लबो पे हंसी हम तो जैसे
ज़िंदा हो जाते है..भूल जाते है उन इंसानो को,जो सिर्फ दग़ा ही दिया करते है...