Saturday 27 July 2019

क्यों मन है आज कि इन पन्नो पे बिखर जाए...लिखे इतना,पता ना चले कि रात कब गुजर जाए...

राते जो अक्सर हम को आंसुओ का भरपूर खज़ाना देती आई है..कभी जो मन ना भी हो,फिर भी

जबरन रुलाती आई है...कभी पन्नो की स्याही उड़ेली इस ने ,तो कभी पन्नो को ही बर्बाद कर डाला..

चुपके से आज यही पन्ने कहते है,अलविदा कर दे आंसुओ को..प्यार बिखेर दे इन पे अपने जज्बातो के..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...