क्यों मन है आज कि इन पन्नो पे बिखर जाए...लिखे इतना,पता ना चले कि रात कब गुजर जाए...
राते जो अक्सर हम को आंसुओ का भरपूर खज़ाना देती आई है..कभी जो मन ना भी हो,फिर भी
जबरन रुलाती आई है...कभी पन्नो की स्याही उड़ेली इस ने ,तो कभी पन्नो को ही बर्बाद कर डाला..
चुपके से आज यही पन्ने कहते है,अलविदा कर दे आंसुओ को..प्यार बिखेर दे इन पे अपने जज्बातो के..
राते जो अक्सर हम को आंसुओ का भरपूर खज़ाना देती आई है..कभी जो मन ना भी हो,फिर भी
जबरन रुलाती आई है...कभी पन्नो की स्याही उड़ेली इस ने ,तो कभी पन्नो को ही बर्बाद कर डाला..
चुपके से आज यही पन्ने कहते है,अलविदा कर दे आंसुओ को..प्यार बिखेर दे इन पे अपने जज्बातो के..