घिर आए अचानक से यह बदरा और क्यों झमाझम बरसने लगे है..हवाओ के तेज़ झोकों से क्यों हम
बहक रहे है..मन करता है आज इतना सजे-इतना सँवारे अपने आप को..मदहोशियों को आवाज़ दे
और पुकारे अपने मन के मीत को..फिर लगा सवारना तो एक धोखा है..मीत को पुकारे क्यों,जो बसा
है रूह के अंदर उस को भला आवाज़ क्यों..सजना नहीं कि हमारी सादगी पे लुट चुका है हमारा मन का
मीत...
बहक रहे है..मन करता है आज इतना सजे-इतना सँवारे अपने आप को..मदहोशियों को आवाज़ दे
और पुकारे अपने मन के मीत को..फिर लगा सवारना तो एक धोखा है..मीत को पुकारे क्यों,जो बसा
है रूह के अंदर उस को भला आवाज़ क्यों..सजना नहीं कि हमारी सादगी पे लुट चुका है हमारा मन का
मीत...