हसरतो की क्या मंशा है और तेरी चुप्पी के क्या कहने...रूहे-लिबास जो पहना है तूने,उस के वज़ूद
की जरुरत क्या है...धागे जो बांधे है बहुत इत्मीनान से तूने, खोले गा गाँठें भी तू, उतनी ही इत्मीनान
से..बंधन मे किस के साथ कौन बंधा,कुदरत ने खुद तय किया बहुत ही इत्मीनान से..हम जो अब सो
रहे है बहुत इत्मीनान से...चुप्पी हम हमारी होगी और तू तड़प जाए गा हमारे ही इम्तिहान से..
की जरुरत क्या है...धागे जो बांधे है बहुत इत्मीनान से तूने, खोले गा गाँठें भी तू, उतनी ही इत्मीनान
से..बंधन मे किस के साथ कौन बंधा,कुदरत ने खुद तय किया बहुत ही इत्मीनान से..हम जो अब सो
रहे है बहुत इत्मीनान से...चुप्पी हम हमारी होगी और तू तड़प जाए गा हमारे ही इम्तिहान से..