रूह की सच्चाई को देखा बहुत नज़दीक से..कुछ भी कमी ढूंढ नहीं पाए..क्या कुछ नहीं भरा इस मे,
किताब इस पे अभी लिख नहीं पाए..कश्मकश मे है,किताब लिखे या रूह को नवाज़े...सोच मे पड़े
थे कि क्या करे क्या ना करे..बरबस आज नज़र पड़ी रूह के साथ सजी इन आँखों पे..उलझन मे है
अब किस को नवाज़े..रूह या इन पाक आँखों को...यक़ीनन..भगवान् ने तुझ को बना कर फक्र महसूस
किया होगा..कि अब ऐसा अवतार मैं फिर कभी ना बना पाऊ गा..
किताब इस पे अभी लिख नहीं पाए..कश्मकश मे है,किताब लिखे या रूह को नवाज़े...सोच मे पड़े
थे कि क्या करे क्या ना करे..बरबस आज नज़र पड़ी रूह के साथ सजी इन आँखों पे..उलझन मे है
अब किस को नवाज़े..रूह या इन पाक आँखों को...यक़ीनन..भगवान् ने तुझ को बना कर फक्र महसूस
किया होगा..कि अब ऐसा अवतार मैं फिर कभी ना बना पाऊ गा..