Saturday 6 July 2019

पलकों के शामियाने मे बंधी यह आंखे नींद से आज क्यों कोसों दूर है...जहां तक जा रही है नज़र,आवाज़

किसी भी झरोखे से नहीं आ रही है...कोई गीत नहीं ऐसा जो आज सुलाए हम को..करवटों मे जाए गी

रात,आंखे बोझिल हो कर भी सो नहीं पाए गी...दिल कह रहा है आँखों से,चल मिल कर दोनों रात यू ही 

गुजार जाए गे..दिमाग जो सुनता किसी की भी नहीं,यकीन से आज कहता है,एक गीत फिर भी तेरी

नींद की लाज रखने जरूर आए गा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...