पलकों के शामियाने मे बंधी यह आंखे नींद से आज क्यों कोसों दूर है...जहां तक जा रही है नज़र,आवाज़
किसी भी झरोखे से नहीं आ रही है...कोई गीत नहीं ऐसा जो आज सुलाए हम को..करवटों मे जाए गी
रात,आंखे बोझिल हो कर भी सो नहीं पाए गी...दिल कह रहा है आँखों से,चल मिल कर दोनों रात यू ही
गुजार जाए गे..दिमाग जो सुनता किसी की भी नहीं,यकीन से आज कहता है,एक गीत फिर भी तेरी
नींद की लाज रखने जरूर आए गा...
किसी भी झरोखे से नहीं आ रही है...कोई गीत नहीं ऐसा जो आज सुलाए हम को..करवटों मे जाए गी
रात,आंखे बोझिल हो कर भी सो नहीं पाए गी...दिल कह रहा है आँखों से,चल मिल कर दोनों रात यू ही
गुजार जाए गे..दिमाग जो सुनता किसी की भी नहीं,यकीन से आज कहता है,एक गीत फिर भी तेरी
नींद की लाज रखने जरूर आए गा...