Wednesday, 17 July 2019

सावन की यह झड़ी,कहां कम कर रही है दिल की लगी..दिल तो दिल है,समझे से कहां समझे गा अभी..

भिगो कर आंचल अपना,कह रहा है कोई.. भीग आज तू इतना..सम्भले से ना संभल पाए तू...सैलाब की

तेज़ धारा तुझे बहा कर ले आए पास मेरे...तुझे देखता ही रहू और कहू बरखा से,अपने सागर से थोड़ा

नीर मुझे दे दे..जब मन हो भीगूँ संग साजन के,कोई देखे ना हमे दिल का प्यार यू ही बरसता ही रहे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...