सोने के लिए गर रात काफी होती तो दिन मे सपने कौन देखा करता...मुहब्बत मे गर हर बार सौदा
होता तो प्यार की कीमत के लिए कौन सहारा ढूंढा करता...दौलत का नशा गर सर चढ़ कर हमेशा
बोला करता,तो प्यार की भीख लेने के लिए किसी गरीब मुहब्बत को क्यों थामा करता...सादगी ही
अक्सर सपनो को संवारा करती है..जो नन्हे सपनो मे पले उस से जयदा ख़ुद्दार यहाँ कोई हुआ नहीं
करता..
होता तो प्यार की कीमत के लिए कौन सहारा ढूंढा करता...दौलत का नशा गर सर चढ़ कर हमेशा
बोला करता,तो प्यार की भीख लेने के लिए किसी गरीब मुहब्बत को क्यों थामा करता...सादगी ही
अक्सर सपनो को संवारा करती है..जो नन्हे सपनो मे पले उस से जयदा ख़ुद्दार यहाँ कोई हुआ नहीं
करता..