बहुत दिनों से परख रहे थे,प्यार के मोल को समझ रहे थे...ज़माने आए है,ज़माने आए गे..प्यार की
कीमत और मोल के क्या भाव रह जाए गे...कल सतयुग था,आज कलयुग है..जब प्यार का अर्थ प्यार
ही था..एक पूर्ण- समर्पण था,साथी के हर सुख हर दुःख मे खुद को डुबो देने का जज़्बा था..दूर हो कर
भी दुआओं का बेइंतेहा रेला था..आज प्यार..दौलत और ऐशो-आराम के साए मे पलता है..कमी को देख
कागज़ के टुकड़ो मे ख़त्म हो जाता है..कलयुग ख़त्म ना होने पाए,अभी भी कही प्यार पूर्ण-समर्पण मे पलता
है..
कीमत और मोल के क्या भाव रह जाए गे...कल सतयुग था,आज कलयुग है..जब प्यार का अर्थ प्यार
ही था..एक पूर्ण- समर्पण था,साथी के हर सुख हर दुःख मे खुद को डुबो देने का जज़्बा था..दूर हो कर
भी दुआओं का बेइंतेहा रेला था..आज प्यार..दौलत और ऐशो-आराम के साए मे पलता है..कमी को देख
कागज़ के टुकड़ो मे ख़त्म हो जाता है..कलयुग ख़त्म ना होने पाए,अभी भी कही प्यार पूर्ण-समर्पण मे पलता
है..