फूलो का गज़रा सजा कर बहुत इतरा रहे थे...खुद ही खुद पे लजा रहे थे..आईना देखा तो अपने चेहरे
पे तेरी सूरत को देखा..यह कैसा करिश्मा है जिसे चाहा उस को खुद मे देखा...गज़रा जो अब जुल्फों से
बिखरने लगा था..एक एक फूल जैसे तेरी महक से मुझे महका रहा था..सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा,यह
जैसे सिखा रहा था..टूट के कैसे चाहते है,यह बिखरे फूलो का गज़रा मुझे बता रहा था...
पे तेरी सूरत को देखा..यह कैसा करिश्मा है जिसे चाहा उस को खुद मे देखा...गज़रा जो अब जुल्फों से
बिखरने लगा था..एक एक फूल जैसे तेरी महक से मुझे महका रहा था..सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा,यह
जैसे सिखा रहा था..टूट के कैसे चाहते है,यह बिखरे फूलो का गज़रा मुझे बता रहा था...