बहुत दूर तक नंगे पांव चलने के बाद,यह याद आया कि हम तो राह भटक गए है...उजालों को पीछे
छोड़ कर,इन अंधेरो मे बेवजह चले आए है...नरम चादर और किताबो की दुनिया से निकल कर,क्या
सोचा था और क्या हासिल कर पाए है...नन्हे नन्हे पांव और मेरे वज़ूद को नई पहचान देने वाले..
किस मोड़ पे ले आई यह ज़िंदगी,ना साँस ले पा रहे है ना ही दम तोड़ पा रहे है..
छोड़ कर,इन अंधेरो मे बेवजह चले आए है...नरम चादर और किताबो की दुनिया से निकल कर,क्या
सोचा था और क्या हासिल कर पाए है...नन्हे नन्हे पांव और मेरे वज़ूद को नई पहचान देने वाले..
किस मोड़ पे ले आई यह ज़िंदगी,ना साँस ले पा रहे है ना ही दम तोड़ पा रहे है..