Monday 22 July 2019

यह लफ्ज़,यह अल्फाज़ क्या कमाल है..कभी रुला देते है जाऱ जाऱ तो कभी ख़ुशी दे कर भी रुला देते

है...बरसो पुरानी यादो को रख सामने, दिल के टुकड़े टुकड़े कर देते है तो कभी उन्ही लम्हो से कुछ

खास लम्हे चुरा कर मुस्कुराने पे मजबूर कर देते है...वक़्त तो चलता है हमेशा अपनी चाल से,हम

नादान ही कुछ समझ ना पाते है...आ ज़िंदगी,तुझे फिर लगाते है गले,कि तुझे नाराज़ कर के हम

ज़न्नत की खुशियों को कहां प्यार कर पाते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...