कल की वो शाम..बन गई कब कितनी खूबसूरत...कब वो हम को सिखा गई जीवन जीने का इक
मकसद...रोम रोम खिला ऐसे,जैसे कली खिली नई नई हो जैसे...सारा बग़ीचा सामने था,पर इक
सूंदर फूल चुना हम ने ऐसा..आँखों की चिलमन मे झलका उस की खुशबू का वो रेला...नई नई
खुशबू से महका मेरा जीवन,मेरा सवेरा..
मकसद...रोम रोम खिला ऐसे,जैसे कली खिली नई नई हो जैसे...सारा बग़ीचा सामने था,पर इक
सूंदर फूल चुना हम ने ऐसा..आँखों की चिलमन मे झलका उस की खुशबू का वो रेला...नई नई
खुशबू से महका मेरा जीवन,मेरा सवेरा..