कांटे तो उलझने डालते रहे राहो मे मेरी...पग पग चुभते रहे पावों मे मेरी..कभी जुदा किया अपनों से,
तो कभी परायो से दर्द उधार देते रहे..खून जितना रिसा इन घावों से,हम उतना अपने पांव धरती पे
जमाते रहे...हंसी दे कर दूजो को,हम अपना गम सब से छुपाते ही रहे..बहुत हुआ..कह दिया अब इन्ही
कांटो से,आओ अब तो दोस्ती कर लो हम से..तुम्हारे चुभने के लिए अब जिस्म मे कही जगह नहीं मेरे..
तो कभी परायो से दर्द उधार देते रहे..खून जितना रिसा इन घावों से,हम उतना अपने पांव धरती पे
जमाते रहे...हंसी दे कर दूजो को,हम अपना गम सब से छुपाते ही रहे..बहुत हुआ..कह दिया अब इन्ही
कांटो से,आओ अब तो दोस्ती कर लो हम से..तुम्हारे चुभने के लिए अब जिस्म मे कही जगह नहीं मेरे..