चांदनी सुन रही थी गौर से अपने चाँद की दास्तां...निहार रही थी बार बार उस के निखार की इंतेहा..
नूर देख चाँद का,नज़र उतारी बार बार..यकीं है अपने चाँद पे खुद से भी जय्दा...बादलो मे ग़ुम हुआ,
मगर चांदनी को कोई खौफ नहीं..उस की वफादारी पे सदके जाती है यह चांदनी...चाँद तो आखिर उसी
का चाँद है..पलके उठाए या पलके गिराए,साथ है सदियों तल्क का..
नूर देख चाँद का,नज़र उतारी बार बार..यकीं है अपने चाँद पे खुद से भी जय्दा...बादलो मे ग़ुम हुआ,
मगर चांदनी को कोई खौफ नहीं..उस की वफादारी पे सदके जाती है यह चांदनी...चाँद तो आखिर उसी
का चाँद है..पलके उठाए या पलके गिराए,साथ है सदियों तल्क का..