Monday 1 July 2019

चांदनी सुन रही थी गौर से अपने चाँद की दास्तां...निहार रही थी बार बार उस के निखार की इंतेहा..

नूर देख चाँद का,नज़र उतारी बार बार..यकीं है अपने चाँद पे खुद से भी जय्दा...बादलो मे ग़ुम हुआ,

मगर चांदनी को कोई खौफ नहीं..उस की वफादारी पे सदके जाती है यह चांदनी...चाँद तो आखिर उसी

का चाँद है..पलके उठाए या पलके गिराए,साथ है सदियों तल्क का..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...