नज़र से परे पर नज़र के पास है...दुआ दिल मे है और दिल के पास भी है..हाथ उठा दिए इबादत मे और
सब की ख़ुशी के लिए मुस्कुरा दिए..क्यों रहे दिलों मे मैल,यह भी कोई बात है..भूल जाना है तमाम वो
गिले-शिकवे जो कभी दिलों पे हावी थे...उस की इबादत के लिए कौन सा वक़्त ढूंढे कि हर लम्हा तो
मिला ही उस से है...तुम भी कहो हम भी कहे,सब मिल के कहे...दर्द-दुःख के बादल अब तो छंट जाए
यह ईद कुछ ऐसी ही आई है..