उम्र का अल्हड़ सा दौर और मुहब्बत ने लिया एक नया ही रूप...वो बांका मुस्कुराता,खुद भी था इक
अल्हड़ सा मासूम दौर... बातो का सिलसिला था इतना मशगूल,बेखबर थे दोनों दिन था कहा और रात
थी कितनी दूर...छुआ किसी ने किसी को नहीं पर मुहब्बत हो गई आसमां के छोर तक मशहूर...उस
की मासूम हंसी पे वो उस के कदमों मे झुक गया...माँगा उम्र भर का साथ मगर सिलसिला तो तभी से
सदियों का हो गया...उस ने उस को अपना शिव कहा और वो अपनी गौरी मे गुम हो गया...