Thursday 20 August 2020

 अपने बाग-बगीचे की नन्ही सी चिड़िया..बाग था सारा उस का,वो थी उड़ती-फुदकती इक शानदार 


चिड़िया...बेफिक्र बेपरवाह किसी भी बात से परे,बार-बार अपने ही बाग मे खो जाने वाली वो नन्ही 


मासूम सी चिड़िया..वो बाग नहीं उस का ऐसा संसार रहा,जहा मिला उस को सब कुछ जो जो उस का 


खवाब रहा...बाग जो उस से छूट गया,रोई तड़पी नन्ही चिड़िया.. कोई नहीं मिला फिर उस को अपने 


उसी बाग के जैसा..जो उस को फिर से उड़ने देता..उस की हर कूक की बोली को समझता...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...