ना जाने कितने ही नाम,कितने ही रूप ले..धरा पे आए गोपाला तुम..खुशनसीब हो,दो दो माओं का प्यार
लेते रहे तुम...यह करिश्मा ही तो था,सब को अपने रूप से और कर्मो से लुभाते रहे..किसी के लिए रहे
गोपाल किसी के लिए माखन चोर...फिर भी सब के रहे चित-चोर...तुम को देखे या लीला तुम्हारी,कान्हा
तुम हो जग को शुद्ध प्रेम का पथ और पाठ सिखाने वाले...परिशुद्ध प्रेम का उदाहरण देने वाले,ऋणी हो
गए हम कान्हा तेरे...जन्म भी लीला,कर्म भी लीला..प्रेम पाठ भी तेरी अनमोल लीला...