Friday 21 August 2020

 मलमल का वो दुपट्टा मुझे लौटा दे कि मेरे बाबुल के घर का ताज़ है यह ...जिस को ओढ़ाया माँ ने सर 


पे मेरे कि इस मे मेरी माँ का झलकता साया है...बचपन की सुहानी यादें जुड़ी है इस के हर धागे मे..


और हर धागे मे बाबुल की सारी दुआए है...माँ ने सहेजा था इस को मेरे सलोने रूप को महकाने के 


लिए..तुझे कैसे दे दे इस दुपट्टे को..यह खव्बों के संसार से जुड़ा मेरा बेशकीमती तोहफा है...तू दे मुझ 


को कितने तोहफे मगर यह मलमल का दुपट्टा तो मेरे बाबुल के घर का ताज़ है..शान है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...