हज़ारो ख़ामोशीया जब एक साथ बोल उठी तो पत्थर मे भी जैसे जुबां आ गई...कौन कहता है,पत्थर
बोला नहीं करते...शिद्दत से गर पूजा जाए तो पत्थर मे भी इंसा मिल जाते है...बात करे इसी शिद्दत की
सज़दा करे इसी पत्थर का तो भगवान् भी इन्ही मे दिख जाते है..टुकड़ों को इत्मीनान से जोड़ा,किसी भी
इम्तिहान से परे इन को खूबसूरत सांचे मे ढाला तो यह पत्थर बेइंतिहा शानदार हो गए...उम्मीद से दूर
सूरज की पहली किरण की तरह और रात के चाँद की शोख चांदनी की तरह..यह पत्थर गहरी ख़ामोशी
मे भी आवाज़ बन जाते है...