Sunday 9 August 2020

 हज़ारो ख़ामोशीया जब एक साथ बोल उठी तो पत्थर मे भी जैसे जुबां आ गई...कौन कहता है,पत्थर 


बोला नहीं करते...शिद्दत से गर पूजा जाए तो पत्थर मे भी इंसा मिल जाते है...बात करे इसी शिद्दत की 


 सज़दा करे इसी पत्थर का तो भगवान् भी इन्ही मे दिख जाते है..टुकड़ों को इत्मीनान से जोड़ा,किसी भी 


इम्तिहान से परे इन को खूबसूरत सांचे मे ढाला तो यह पत्थर बेइंतिहा शानदार हो गए...उम्मीद से दूर 


सूरज की पहली किरण की तरह और रात के चाँद की शोख चांदनी की तरह..यह पत्थर गहरी ख़ामोशी 


मे भी आवाज़ बन जाते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...