कभी तेरे लिए पूजा का आडम्बर किया नहीं...कि पूजा की वो रस्में वो कायदे मुझ को आते ही नहीं...
सिखाया गया था बचपन मे माँ-बाबा ने,किसी को कभी दुःख देना नहीं...जाने-अनजाने भूल हो गई हो
तो माफ़ीनामा बस सुनाया तुम्हे...तुम जग के विघ्नहर्ता ऋणहर्ता,हर रोज़ शीश नवाया मैंने...मन की
हर बात बेशक बुरी या अच्छी,गलत रही या सही रही..तुम को ही बताया मैंने...अपनी रक्षा करने का
वादा तुम्हे भाई बना,मैंने ले लिया तुम से...पूजा की रस्में मैं क्या जानू,बस जानू तो इतना जानू कि सुबह
शाम तुम को याद करू सच्चे सीधे मन से....