तेरे प्रेम के रंग मे रंग कर..जग के तानों को जाना..तू है मेरा और मैं हू तेरी,किसी बंधन से अब क्या नाता..
परिशुद्ध प्रेम की असली परिभाषा..बंधन से दूर रूह ने रूह को कितनी बार पुकारा...दिल की हर इक
धड़कन तेरे दिल की धड़कन सुन लेती..तेरी आँखों के गिरते आंसू,चुनरी मेरी हर रात भिगोते...तेरे प्रेम
की हर आहट से मेरी दुनियां जगमग करती..तभी तो दुनियां तेरे नाम से पहले मेरे नाम को तुझ से पहले
लिखती..अर्धग्नी नहीं बनी मैं तेरी,फिर भी प्रेम की हर सीढ़ी तेरे संग पार मैंने कर ली..तेरे प्रेम मे पगी यह
पगली,किसी रिश्ते की नहीं है भूखी..तेरा प्रेम मिला है इतना तभी तो राधा ही बनी प्रेम की उजली धारा..