वो कान्हा ही तो थे जिन के बोल सुन,नन्ही राधा ने अपनी आँखों को खोला था..पहली नज़र और पहली
बार अपने कान्हा को ही देखा था..अनंत-काल का अलौकिक यह प्रेम,कृष्ण-राधा का प्रथम चरण ही था..
बालपन का प्रेम था दोनों का इतना गहरा,जग ने तब भी कितना पहचाना था..वो तो था ग्वाला कान्हा और
राधा का प्रेम सुहाना था..ना कोई नाता-रिश्ता चाहा बस शुद्ध प्रेम की चाहत ने दोनों को एक ही रंग से
रंग डाला था..द्वारकाधीश बने जब कृष्णा,उस राजा को कब चाहा था..ग्वाला कान्हा था उस की पूंजी,इस
के सिवा राधा ने कुछ और ना माँगा था...