Wednesday 12 August 2020

 वो कान्हा ही तो थे जिन के बोल सुन,नन्ही राधा ने अपनी आँखों को खोला था..पहली नज़र और पहली 


बार अपने कान्हा को ही देखा था..अनंत-काल का अलौकिक यह प्रेम,कृष्ण-राधा का प्रथम चरण ही था..


बालपन का प्रेम था दोनों का इतना गहरा,जग ने तब भी कितना पहचाना था..वो तो था ग्वाला कान्हा और 


राधा का प्रेम सुहाना था..ना कोई नाता-रिश्ता चाहा बस शुद्ध प्रेम की चाहत ने दोनों को एक ही रंग से 


रंग डाला था..द्वारकाधीश बने जब कृष्णा,उस राजा को कब चाहा था..ग्वाला कान्हा था उस की पूंजी,इस 


के सिवा राधा ने कुछ और ना माँगा था...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...